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वन / गुलाम नबी ‘फ़िराक़’

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उसने कहा मुझे कि तुम
उपवनों, पुष्प वाटिकाओं को
वन की चीड़ों, चिनारों और सरूवृक्षों को
प्रकाश और पवन को
समुद्रों और सरोवरों को
जीव जंतुओं की उमंग भरी गुहार को
अपने छंदों में जगह देते हो
अब क्या कहूँ उसे
कैसे कहूँ
इन सब के आने के बाद जन्मा मानव
इन्हीं से होकर आगे बढ़ा
वह चलता रहा अथक
इनसे ही लिए रंग-रूप नए
फिर बड़ा हुआ वह, इतना बड़ा
उसका होना और ना होना इनसे है
इन्हीं में है सुख-चैन उसका
है भाग्य ने उसका इनसे मिलन कराया
ये ना होते तो कहो न
मैं तुमको कहाँ ढूँढ़ता फिरता।

शब्दार्थ
<references/>