Last modified on 11 नवम्बर 2014, at 20:19

चुप्पी / ‘निशात’ अंसारी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:19, 11 नवम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चुप्पी भी कुछ कहती है
यदि समझ हो, चुप्पी की ताक़त पहचानो
चुप्पी को शब्द या क़लम की नहीं ज़रूरत
शब्दहीन होती चुप्पी जैसे शब्दहीन
चुप्पी को पढ़ोगे एक पुस्तक की तरह
खु़दा क़सम होगा परिचय
एक नए संसार का
बातें करते करते थक जाओगे
कुद न मिलेगा
चुप्पी को यदि पढ़ सकोगे
मिलेगा वह
जिसका तुमको न हो ज्ञान
यदि दिल में हो इच्छा कुछ बोलने की
कुछ न बोलो
चेहरे स्वयं ही बातें करते हैं
आँखें केवल दृष्टि की अभिव्यक्ति नहीं
संभाषण है उनके पास
कोई तसवीर या चित्र देखना चाहिए
बे-जुबान हो के भी बोलते बहुत कुछ
मनुष्य थक कर चूर हुआ है
वह कहकर जो नहीं बोलना चाहिए था
‘‘मुक्ति ख़ामोशी में है’’ पैग़म्बर ने कहा
जो कहीं न समा सके, है चुप्पी में समाता
चुप्पी अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है
छंद अपना इसका, रीत अपनी