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मंगलमय हो! / राधेश्याम ‘प्रवासी’

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मंगलमय हो संस्कृति-पथ पर अगला चरण तुम्हारा!

मंज़िल से पहले नाविक पतवार न रूकने पाये,
भँवरों में पड़ करके मय का ज्वार न उठने पाये,
मार्ग करेगा अखिल विश्व निश्चय अनुसरण तुम्हारा!

मज्जू भारती की गौरव - गुण- गरिमा जग में दमके,
रजत रश्मि बरसायें रातें, स्वर्ग सबेरा चमके,
अनुकरणीय बने बसुधा में शुभ आचरण तुम्हारा!

हिमगिरि के उन्नत शिखरों से काश्मीर की घाटी से,
अवध, बंग, पंजाब, सिन्धु, रावी, गंगा की माटी से,
आती है ध्वनि जिसे गा रहा अन्तः करण तुम्हारा!

रोक सका कब सदाचार को दुराचार है बाहों में,
कौन सकेगा टोक प्रगति के सेनानी को राहों में,
सत्य, त्याग, तप का अभेद्य है दृढ़ आभरण तुम्हारा!

पांचजन्य-सा एक बार जागरण मन्त्र का गुंजन हो,
छन्द-छन्द की पंक्ति-पंक्ति में जीवन का स्पन्दन हो,
राष्ट्रधर्म के लिए अमर हो जीवन-मरण तुम्हारा!