Last modified on 18 नवम्बर 2014, at 23:08

राहु सी मृत्य / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 18 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर |अनुवादक=धन्य...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राहु सी मृत्यु
डालती छाया केवल,
कर नहीं सकती ग्रास जीवन के स्वर्गीय अमृत को
जड़ के कवल में-
निश्चित जानता हूं मन में इस बात को।
प्रेम का असीम मूल्य
ठग ले सम्पूर्ण कोई
ऐसा दस्यु नहीं गुप्त कहीं
निखिल के गुहा गहृर में -
निश्चित जानता हूं मन में इस बात को।
सबसे बढ़कर ‘सत्य’ रूप में पाया था जिसे
सबसे बढ़कर ‘असत्य’ था उसमें छदम् वेश धारण कर,
अस्तिवत्का यह कलंक कभी
सहता नहीं विश्व का विधान है -
निश्चित जानता हूं मन में इस बात को।
सब कुछ चल रहा निरन्तर परिवर्तन वेग में,
यही है धर्म काल का।
मृत्यु दिखाई देती आ एकान्त अपरिवर्तन में,
इसी से इस विश्व वह सत्य नहीं -
निश्चित जानता हूं मन में इस बात को।
विश्व को जाना था जिसने ‘है’ के रूप में
वही हूं उसका ‘मैं’
अस्तित्व का साक्षी वही,
‘परम-मैं’ के सत्य में सत्य है उसका -
निश्चित जानता हूं मन में इस बात को।

7 मई, 1940