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आज मेरा जन्मदिन है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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आज मेरा जन्मदिन है।
प्रभात प्रणाम ले अपना
उदय दिगन्त की ओर देखा मैंने,
देखा, सद्यस्नाता ऊषा ने
अंकित कर दिया है आलोक चन्दन लेख
हिमाद्रि के हिम शुभ्र कोमल ललाट पर।
जो महादूरत्व है निखिल विश्व के मर्मस्थल में
उसी की देखी आज प्रतिमा गिरीन्द्र के सिंहासन पर।
गभीर गाम्भीर्ण युग-युग में
छाया धन अपरिचित का कर रहा पालन
पथ हीन महा अरण्य में,
अभ्रभेदी सुदूर को वेष्टित कर रखा है
दुर्भेद्य दुर्गम तले
उदय अस्त के चक्र पथ में।
आज इस जन्मदिन में
दूरत्व का अनुभव निविड़ हो चला है अन्तर में।
जैसे वह सुदूर नक्षत्र पथ
नीहारिका ज्योतिर्वाष्प में रहस्य से आवृत है
अपने दूरत्व को वैसे ही देखा मैंने दुर्गम में,
अलक्ष्य पथ का यात्री मैं, अज्ञात है परिणाम जिसका।
आज अपने इस जन्मदिन में-
दूर का पथिक जो, उसी की सुनता हूं पद ध्वनि
निर्जन समुद्र तीर से।

‘उदयन’
प्रभात: 21 फरवरी, 1941