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आग की इबारत / नीलोत्पल

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इस तरह आयीं भीतर तुम
टूटा सदियों का सन्नाटा
भीतर कुछ नहीं सिवाय अंधेरेभरे पहाड़ों के

अंधेरे की बांबियों में जगह बनाई
जहाँ रहा मैं उदास अकेला

धीरे-धीरे तुम समूची मुझमें थीं
जैसे दाग़े हुए जिस्म को
सहला रहा हो तुम्हारा प्यार

देखता घिसती जा रही
तुम्हारे भीतर की स्त्री को

यह मेरी ज़्यादतियां ही थीं
कि मैंने तुम्हें होने नहीं दिया वह
जिसे तुमने लुटाया नहीं
आख़िरी दाँव तक
तुम कितनी बदलीं
एक स्त्री, पत्नी, माँ
और जाने क्या-क्या

दूर से ही सुनता रहा
तुम्हारी असहनीय कराहें
काँपते शावक की तरह

कह नहीं पाया
हाँ, मैं ही क़सूरवार हूं तुम्हारा

ठंड में गलती तुम्हारी त्वचा
उभर आती इन पंक्तियों में
अपने घुटने और एड़ी की तकलीफ़ कहती हुई

मैं जानता हूँ
जब भी ऐसा होता है
तुम्हारा चिड़चिड़ाना भर देता है
मुझे नये तरीक़े से

मैं इतना ही कर पाता हूँ
कि अपनी निस्सहाय ताक़त के साथ
जुड़ता हूँ तुमसे
लेकिन तुम्हारा ग़ुस्सा ही होता है वह
हाँ, तुम्हारा ग़ुस्सा ही
जो ताप देता है मेरे प्रेम को

इस तरह आयीं भीतर तुम
आग की हर इबारत लिखी हमने