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अनगिनत ज़िंदगियां / नीलोत्पल

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     - 1 -

ज़िंदगी वहां भी थी
जहां मैं खोज नहीं रहा था
हर जगह, हर कदम, हर सांस में
वह घुल रही थी
जैसे हमने ख़ुद को देखा हो
और चौंककर घबराने लगे
अरे, यह कौन है
जो मेरी तरह आवाज़ बनाता है
लेकिन जब चुप होता है तो
भूल जाता हूं कि पेड़ के नीचे गिरे
सारे पत्ते मेरे हैं
और मैं उन्हें विदा कर देता हूं
जैसे सारी ज़िंदगियां छिप रही हों
मेरी ओट में

मैं हर बार सोचता रहता हूं
ये जहाज, मोटर गाडियां, कैंचियां
पलंग, कंचे, काग़ज़ और रोशनी
किस तरह ज़रुरतों में खदबदाते हैं
और मैं उन्हें छोड़ देता हूं पके आलुओं के स्वाद में
जिंदगी एक पुकार, एक दुख है
वह धक्का देती है
मैं गिरता हूं
अपनी ही छांह में

मेरे भीतर का संगीत बजता है
मैं चिड़ियां देखता हूं
और वह पुल जिसे पार करता हूं रोज़ाना
एक दिन गिर जाता है

सारी चींटियां जिन्हें मैं नाम से नहीं जानता
बच जाती हैं
उन्हें मालूम है
मिट्टी से किस तरह उगा और बचा जाता है

      



    - 2 -

मैं दबे पांव नहीं हूं
मैं छिप नहीं सकता ख़ुद से
मुझे पसंद है कि ज़िंदगी की तरह
हर जगह खोदा जाऊं एक नये शब्द के लिए
उन पुराने खोए पत्थरों के लिए
जो हमारी स्मृति में रहे बरसों

ज़िंदगी में बहुत-सी बातें
ऐसी भी सच थीं जिन्हें हम नहीं जानते

मैं उनके लिए अपने घर की दीवारें
खोल देता हूं

मुझे नहीं मालूम किन मरुस्थलों से
हवाएं लाती हैं हमारी यात्रा के पड़ावों का संदेश
लेकिन वे बनी रहती हैं गुज़र जाने के बाद भी

अनेक हाथों और पैरों के दरमिय़ान
हम बनाते हैं एक बोगदा
सीलन, कश्ती और धुंध भरा
वे चाय के खाली प्याले
जिनमें हमने डूबोया विचारों को
और बाहर आए अपनी काहिली से

         - 3 -

हम सारी उम्र यात्री रहे
हम बचे रहते हैं तमाम की गई अनैतिकताओं के बाद भी

हम बूढ़ों के शब्दों में भीगते हैं
पार करते हैं स्मृतियों का समुद्र

हम बार-बार घटनाओं को दोहराते
टांकते रहते हैं अपने रंग और शब्द
उन अधूरी तस्वीरों पर जो टंगी गुमनाम पहाड़ों पर

हम देखते हैं अपनी आत्माओं का कच्चापन
हमने ज़िंदगी के तमाम वनवासों को काटा
हमने रास्ते खोजे, जंगल देखे
हम वहां ठहरे जहां दरवाजे नहीं थे

यात्राओं में हम जहां-जहां डूबे
ख़ुद को अनजान तटों पर पाया

हमने आग, फूल, पत्तियों को रंग और नाम दिए

ज़िंदगी को हमने वहां पाया
जहां दुकानें, सम्बन्ध, मठ, मंदिर और गिरिजाघर नहीं थे
हम उन पुराने बैरकों से लौटते रहे

हमारे सच हमारी भूलों के कारण थे
जिन्हें या तो देर से पाया या उन्हें कभी नहीं जान सके

हम या तो डूबते हैं या डूबते रहने का
शानदार अभिनय करते हैं

आख़िर ज़िंदगी में मूल्यवान चीज़ें काम न आईं
और वे सारी प्रार्थनाएं
जिनके केन्द्र में था ईश्वर
लेकिन उसका कोई बीज रंग नहीं
वह जीवन से बाहर
हवाओं में घुमाया घन है
जिसके छूटते ही डर जाते हैं दाना चुग रहे पंछी