मेरे पास कोई महान उद्देश्य नहीं
मैं सड़ा-गला छिलका बहा दिया गया
ऐसे ही कोई विद्वान धकेल देता है
उस प्यार को
जिसे मैंने रोपा था तुम्हारी नाभि में
राजनीतिज्ञ जिन्हें प्यार नहीं वोट चाहिए,
वैज्ञानिक जिन्हें सूत्र और सूत्रधार,
धार्मिक अनुष्ठान जिन्हें पाखंड और कट्टरता
मेले और सभाएं जिन्हें भीड़ और तमाशबीन
एक अकेला मैं
बारिश के बंध के बीच छिटकता हूं स्याही
पृथ्वी की कोरी जगहों पर,
गिरता हूं पत्तों के असभ्य निमंत्रण में,
अंधेरे के पहाड़ों में चोटी की ऊंचाई तलक
देता हूं आवाज़ बनैले पशुओं को,
खो जाता हूं छोटे-छोटे मोड़ों पर
जिन्हें मिल जाना है तुम्हारे और मेरे लिए
गिरती है विचारों की त्वरा
और मैं एक इंसान से दूसरे, दूसरे से तीसरे तक....
इसी तरह जाता हूं
मेरा कोई उद्देश्य नहीं
हो सकता है यह झूठा और बेईमान लगे
कहने को तिनका या फ़साना हो
लेकिन मैं इसी तरह हूं
नामहीन, रंगहीन और असत्य
मेरी कोई छवि नहीं
मैं सारे लफ़्जों में गिराया
और लबों से छुआ गया
मैं गर्माता गिलास जिसमें ठंडक घोली जाएगी
मैं चाशनी का तार बार-बार टूटता
गाढ़ा होने के लिए
मेरा क्या उद्देश्य हो सकता है
अगर मैं रेवडियां नहीं बांटता नए साल में
ऊंची इमारतों में टहलता नहीं गिरने का बोझ लादे
अगर मैं हरा होना चाहता हूं
तो ठीक है
मैं तुम्हारी आंखों के लिए एक पेड़ हूं
पतझर और कट जाने तक
अगर मैं अंधेरा हूं
तो ठीक है
मैं तुम्हारे लिए फैली जड़ हूं
गहरी और नाभि की नाल तक धंसी