Last modified on 12 जनवरी 2015, at 21:22

शिव-महिमा / सुजान-रसखान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 12 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसखान |अनुवादक= |संग्रह=सुजान-रसख...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सवैया

यह देखि धतूरे के पात चबात औ गात सों धूलि लगावत है।।
चहुँ ओर जटा अटकै लटके फनि सों कफनी फहरावत हैं।।
रसखानि सोई चितवै चित दै तिनके दुखदंद भजावत हैं।
गज खाल की माल विसाल सो गाल बजावत आवत हैं।।256।।