Last modified on 28 जनवरी 2015, at 13:41

संजीवणी मंतर / राजू सारसर ‘राज’

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 28 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सबदां री स्याई नैं
सांचोड़ी मिठास रो
रंग देय ’र
थूं मांड
म्हारै हिवडै़ माथै
रसभीणी, रंगसीळी
नवीं बातां।
अरथ नीसरै,
जे भावनावां बण ’र
तो बिना कागद
उतर सकै
हिवड़ै माथै गै ’रागै ’रा
बेद सासतर
उपनिसद अर पुराण
सगळी विद्यावां विधावां।
सबद सूं
नीं होवै सगती अळगी
पण बोलणियै रै, पांचूं तत रौ
सांचो संजोग हुवै,
जणा ई
लिखीजै काळ पानडंा माथै
कोई सबद संजीवणी मंतर।