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हिंड्दा–हिंड्दै / भूपी शेरचन

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हिंड्दा–हिंड्दै केही सम्झेर
बटुवा बाटोमा हाँसेझैँ
किसानको हृदय अन्न बनेर
खेतको माटोमा हाँसेझैँ
तिमी हाँस्ता यस्तो लाग्छ प्रिये!
तिमी मेरो साटोमा हाँसेझैँ।