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शनिवार / रेणु हुसैन

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हर शनिवार
चला आता है
इक नन्हा-मुन्ना-सा बच्चा
शनि टालने मेरे द्वार ।

लिए हाथ में छोटी लुटिया
आंखों में इक भूखा ज्वार
दर्द भरी एक आह-पुकार

दे दे माई
दे दे माई
मुझको भी थोड़ा-सा प्यार
हो जाएगा भला तुम्हारा
मैं आया हूँ शनि टालने
तेरे द्वार

किसको रोऊं
किसको कोसूं
बातें है सारी बेकार

पर मैं सोचूं बारम्बार
किसने उसको शनि बनाया
कौन है इसका ज़िम्मेदार