Last modified on 19 मार्च 2015, at 11:19

द्वन्द्व / दीप्ति गुप्ता

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:19, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कभी मैं धीर होती हूँ
कभी अधीर होती हूँ
कभी मैं डर में जाती हूँ
कभी निडर मैं होती हूँ
कभी खुशी से मरती हूँ
कभी मैं दुख में मरती हूँ
यह मेरी दुनिया है -
मैं उसमें जीती हूँ!
इन भावों में जीते - मरते
बीत गया है -लम्बा जीवन
शेष बचा जो, जीवन मेरा
करना चाहती उसमें चिन्तन
जन-जीवन का गहरा मंथन
कि,समझ सकूँ गहरे अर्थो को
जीवन की गहरी परतों को!