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ऋतुपति वसन्त / शम्भुनाथ मिश्र

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ऋतुपतिराजक स्वागतमे सजि
प्रकृति नटी छथि आत्म विभोर
पल्लव पनुघल, मज्जर मजरल
मह मह करइत अछि चहु ओर।

नित कोइली कुहुकय उठि भोरे
चंचल पवनक उठय हिलोरे
मधुमासक मधुमे मातल मन
गाबय ऊठि पराती भोर।

सरसिज सरकेँ करय सुसज्जित
मधुपक गुंजन ध्वनि अनुगुंजित
पाबि वसन्ते रास रचौलनि
नटवर नटखट नन्दकिशोर।

किंसुक कुसुमे पाटल कानन
ऋतुपति छीटल सबतरि चानन
प्रिया प्रेयसिक मन मन्दिरमे
प्रणयक उठइत अछि हिलकोर