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बेनजीर / कुमार मुकुल

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पैराहन-ए -दरीदा में लिपटी
जिगर-फिगार अवाम की
अफ्सुर्दा आहों का मरहम-ए -आजार
संगीनों का सीना चाक करता
तमाम तवारीखों की तःहरीरें करता तार-तार
माह-ए -रवां जो उगा है आज की शब
फैज़ के लैला-ए -वतन के अफलाक पर
दिलकश है बड़ी तस्वीर उसकी
सर -ए -रु पर है जवानी का फरोजां जमाल
रगों में इंसानी मुहब्बत की तासीर है
हाथों मे है हजारों द्रौपदिओं का चीर
पूरब की इस बेटी का नाम है
बे -नजीर बेनजीर ।

१९८९