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नित्यता / गुलाम मुहीउद्दीन ‘गौहर’

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अनादिकाल से जी रहा हॅँू मैं
और अभी तक जलता जा रहा हूँ
अनंतकाल तक है जलते रहना
यह नियति मेरी
अनादिकाल का यह प्रशस्ति गीत
बजिता रहेगा मेरे लिए
बजता रहे
जले
मैं जल रहा हूँ
यह मेरी नियति है
पात्रों में
भरी जब उसने शीशों में मदिरा
तभी मदमस्त निद्रा में
मुझे किया ग्रस्त
मैं धता बताकर उसे भाग जो गया
अनजाने में
 अभी तक जलता ही जा रहा हूँ
अनादिकाल का प्रशस्ति गीत
गूँजता रहे मेरे लिए
मुझे बदा है अनंतकाल तक जलते रहना।।