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जयघोष / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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जयतु शक्तिमयी, समर बिच अमर रिपु उद्वेलिनी
जयति भक्तिमयी, चिरन्तन चारु सत् चित् केलिनी
भुक्ति-मुक्तिमयी मही, श्रीं-ह्नीं वरनि संकेतिनी
कर्मगति, थिति ज्ञान, नित चित भरतभूमि निकेतिनी।।1।।
अन्नपूर्णा सङहि अवनी धातु मणि लक्ष्मी खनी
श्रुतिमयी वाणी अङहि भारत महाशक्तिक धनी
कतहु गिरिजा, सिन्धुजा कहुँ, वेदजा सुरधुनि कतहु
कतहु कमला सजल गमला पल्लवित पुष्पित लतहु।।2।।
कतहु पùिनि, हस्त शंखिनि, कतहु चित्रिणि चित्रिता
शान्त ललित उदात्त उद्धत भूमिका कत भिन्नता
विश्वमंचक रूप शोभा भव-विभव उन्नायिका
जयतु ऋतु-ऋतु कृति-प्रकृति कत रूप नवरस नायिका।।3।।
पीत रक्त सिताऽसिता कत वर्ण एकत रजिता
द्रविड द्रुतपद, वन्य गद्गद् स्वरित श्रौत प्रपंचिता
वयो-वृद्धा ज्ञान - सिद्धा विश्व - श्रद्धा बर्धिता
जय सनातनि चिरपुरातनि आदि - अन्त विवर्जिता।।4।।
नित्य नूतन-वैभवा जय षोडशी सकला कला
भारती धरती सदैव पुनर्नवा शिशु शशि बला
सतत गर्वोन्नत शिखर, उर-सागरक गंभीरता
बाहु साल विशाल, प्रतिमा परिसरहु उर्वर मता।।5।।
शान्त स्वच्छ गभीर मानस फलित कानन कामना
मलय चामर पवन पुलकित चन्द्र चर्चित चन्दना
दुर्ग दुर्गम अद्रि तुंग तुरग सिन्धु दिगंगना
सिंहवाहिनि रहथु दाहिनि शिबक शक्ति चिरन्तना।।6।।
बाध अंचल अन्नपूर्णा, कंठ गीता माधुरी
कुरुक्षेत्रक खेत अभिमत, रुचिर सप्तपुरी पुरी
ध्वनित मेदुर मेघ मन्द मृदंग सिन्धुर रागिनी
नृत्य-निरत मयूर नूपुर झिंगुरी झनकारिणी।।7।।
उपवनक डाली भरल, माली स्वयं कुसुमाकरे
धूप-दीपो भानु - चाने, पाद्य गंगोदक करे
कोटि माथक नमन स्तवनक गीत अगनित कंठ स्वर
मन्त्र ‘वन्दे मातरम्’ उच्चरित उर-उर उच्चतर।।8
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हिम निबन्धिनि, सेतुबन्धिनि, सिन्धुसन्धिनि भारती
आहिमाचल-सेतु सन्तति नित उतारथि आरती।।9।।