Last modified on 23 अप्रैल 2015, at 15:13

तुम्हारा आना/ गोबिन्द प्रसाद

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:13, 23 अप्रैल 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


तुम्हारा आना
जैसे खुली आँखों का सपना
तुम्हारा आना
जैसे दिए में लौ का जल उठना

तुम्हारा आना
सूने आसमान में उगता हो जैसे
धीरे-से तारा
तुम्हारा आना
दौड़ता हो जैसे
रगों में पारा

तुम्हारा आना
जैसे घिसटते हुए पाँव की पुलक
मक़बरों के आस-पास
ढलते हुए सूरज की रमक़

तुम्हारा आना
जैसे रात के सन्नाटे में कोई शहर
तुम्हारा आना
साँस लेता हो जैसे कोई वीरान खण्डहर