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बहुआ जे चलली नहाय, तो सासू निरेखइ हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बहुआ जे चलली नहाय,<ref>स्नान करने</ref> तो सासू निरेखइ<ref>निरीक्षण करती है, निरखती है</ref> हे।
बहुआ, कवन मरद चित लायल,<ref>लाया</ref> गरभ जनावल हे॥1॥
सासू आधी राति जा हइ, अउरो पहर<ref>प्रहर</ref> राति हे।
सासू, राती के आव हइ<ref>आता है</ref> भँरवा,<ref>भौंरा, भ्रमर</ref> तो होइ के खिड़की से हे॥2॥
बोलवहऽ<ref>बुलाओ</ref> गाँव के पठेरिया,<ref>एक जाति-पटहेरी या पटहारी, जो धागे में आभूषण गूँथता है</ref> तो रेसम के जाल बुनऽ हे।
ओहि जाल बुझयबइ<ref>फँसाऊँगी, बझाऊँगी</ref> भँवरा, अछरँग <ref>न छूटने वाला चिह्न, लांछन</ref> मोरा छुटि जइहें हे॥3॥
मचियाहि<ref>मचिा पर</ref> बैठल सासू बढ़यतिन,<ref>श्रेष्ठ, पूज्या</ref> चिन्ही लेहु<ref>पहचान ली</ref> अपना बेटा के हे।
सासु, अछरँग मोरा छोरि देहु हे॥4॥

शब्दार्थ
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