बीते दिवस बसन्त के, लगा ज्येष्ठ का मास
विश्व व्यथित करने लगा, रवि किरणों का त्रास
अवनी आतप से लगी, जलने सब ही हाल
जीव, जन्तु चर-अचर सब, हुए अमिल बेहाल
रवि मयूख के ताप से, झुलस गये बन बाग
सूखे सरिता सर तथा, नाले कूप तड़ाग
लगी आग पुर ग्राम में, चिन्ता बढ़ी अपार
नर नारी व्याकुल बसे, भय सदैव उर धार
धनी लोग मार्तण्ड का, देख प्रचण्ड प्रकाश
शान्ति प्राप्ति के हेतु अब, चले हिमालय पास
नृप, रईस, धन पति सभी, दोपहरी के बेर
सोते निज निज भवन में, खस की टट्टी घेर
पर गरीब, निर्धन सकल, सहते रवि का ताप
कोस रहे हैं कर्म को, करते पश्चाताप
तरबूजों, ककड़ी तथा, बर्फ और बादाम
पके आम-फल आदि के, अब बढ़ते हैं दाम
फिर जब आवेगा अही, सुखमय वर्षा-काल
हो जावेगा जगत का, पुनः अन्य ही हाल