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निःस्वार्थ सेवा / मुकुटधर पांडेय

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खींच रहा था हल आतप में बूढ़ा एक बैल सत्रास
उसे देखकर विकल बहुत ही पूछा मैंने जाकर पास
"बूढ़े बैल, खेत में नाहक क्यों दिन भर तुम मरते हो?
क्यों न चरागाहों में चलकर, मौज मजे से करते हो?
सुनकर मेरी बात बैल ने कहा दुःख से भरकर आह-
"इस अनाथ असहाय कृषक का होगा फिर कैसे निर्वाह?

-सरस्वती, दिसम्बर, 1918