देखा मैंने कैसा साज!
आँखें भूली मेरी आज
मेघाच्छादित व्योम निविड़तम तोम निशा विकराल
गरज रही है भीषणता से बन कालिका-कराल
प्रबल पवन उंचास, श्वास, कर में विद्युत करवाल
हे करुणाकर ईश, हमारा होगा अब क्या हाल?
रक्षा करो गरीब-निवाज
आँखे भूली मेरी, आज
देखा मैंने कैसा साज
सहसाा चन्द्र प्रकाश कहाँ से प्रकट हुआ छविधाम
उज्जवलतर हो उठी दिशाएँ, रहा न तम का नाम
निश्चय ही यह है अरूप का रूप अनूप ललाम
बहता जिससे सरस-सुधा का स्रोत शान्त अविराम।
स्वागत हे शोभा-साम्राज्य
आँखे भूली मेरी, आज
देखा मैंने कैसा साज!
-धर्म्म प्रकाश, सितम्बर, 1921