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ज्योतिर्गीत / मुकुटधर पांडेय

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घर-घर दीप जले
कज्जल-कूट-कुहू-कृष्णा यह
राका में बदले
कर निवास अचला बनकर तू
अयि चले कमले
हो तेरे वाहन उलूक के
कोकिल-कूक गले
जड़ता की जड़ तक जल जावे
सुमति-शिखा निकले
हृदय लोक आलोक पूर्ण हो
ज्योतिर्गीत ढले।