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क्षमा याचना / प्रकाश मनु

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माफ करना
पिता
तुम्हारी शुभकामनाओं को। साकार
मैं कभी नहीं करने का
हर बार मंझधार में डूब गिरूंगा मैं
तुम्हारी उम्मीद के खिलाफ
वही मुझ बे-पीढ़ीदार की नियति है
बहुत छोटा, बहुत मामूली रहकर
तुम्हारे खिलाफ
खड़ा रहने को अभिशप्त हूं
पिता...!

माफ करना
दोस्तो
मेरे नाम को माथे से
चिपका नहीं सकोगे तुम
दूसरों पर कूदने खूंदने के लिए
नहीं तुम्हारा काम कभी लूंगा मैं
चढ़ने-गिरने में
तुम्हें अपना दिल अपना विश्वास कभी नहीं
दूंगा मैं

परिस्थितियों का मारा
(बेचारा जो नहीं हूं!)
अपनी फटी जेबें कभी नहीं दिखलाऊंगा मैं
कभी नहीं दिखलाऊंगा
मुट्ठी भर भुने चनों की लाचारी
वक्त के खिलाफ
जिंदा रहने की जिद में

माफ करना प्रिया
जन्म दिन पर वस्त्र
और सिंदूर की डिबिया
नहीं कभी ला सकूंगा मैं
नहीं कभी लाने सोचूंगा भी
मैं तभी तक तुम्हारा हूं
जब तक मेरी चिंताओं का बीहड़
तुम्हें स्वीकार्य है...

माफ करना पिता
माफ करना दोस्तो
माफ करना प्रिया
कि मेरा हर क्रिया व्यर्थ हो तो भी
दुनियादारों, सफलता-
वादियों के आगे
दुम नहीं हिलाने लगूंगा मैं कभी...

भभकते क्रोध में लिखीं क्षत-विक्षत
आग की ये लकीरें
कविता नहीं-
तो भी माफ करना साहित्यिको...

मुझे अ-कवि ब-कवि
बीट या चीट कवि-कुछ भी
कहकर इतिहास से नाम उड़ा देना
साहित्यिको,
और माफ करना
मेरी मनहूस अड़ंगेबाजियों, सख्त बहसों
संशयों के लिए
मा...फ...करना...