Last modified on 1 जुलाई 2015, at 18:25

समानान्तर इतिहास / नीरा परमार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:25, 1 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=नीरा परमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इतिहास
राजपथ का होता है
पगडंडियों का नहीं!
सभ्यताएँ / बनती हैं इतिहास
और सभ्य / इतिहास पुरुष!
समय उस बेनाम
क़दमों का क़ायल नहीं
जो अनजान
दर्रों जंगलों कछारों पर
पगडंडियों की आदिम लिपि—
रचते हैं
ये कीचड़-सने कंकड़-पत्थर से लहूलुहान
बोझिल थके क़दम
अन्त तक क़दम ही रहते हैं
उन अग्रगामी पूजित चरणों के समान
किसी राजपथ को
सुशोभित नहीं कर पाते

शताब्दियाँ—
पगडंडियों से
पगडंडियों का सफ़र तय करते
भीड़ में खो जाने वाले / ये अनगिनत क़दम
किसी मंज़िल तक नहीं जाते
लौट आते हैं
बरसों से ठहरी हुई उन्हीं
अँधेरी गलियों में
जो गलियाँ—
रद्दी बटोरते छीना-छपटी करते कंकालों
कचरों के अम्बारों
झुग्गी-झोपड़ियों के झुके छप्परों से निकलते
सूअरों-मुर्गियों के झुंड में से
होकर गुज़रती हैं!