Last modified on 4 जुलाई 2015, at 12:27

मेरा गाँव / सूरजपाल चौहान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:27, 4 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरजपाल चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!

कच्ची मड्डिया
टूटी खटिया
घूरे से सटकर
बिना फूँस का—
मेरा छप्पर
मेरे घर न
कौए की काँव।
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!

उनके आँगन
गैया बछिया
मेरे आँगन
सूअर, मुर्ग़ियाँ
मेरे सिर
उनकी लाठी
बेगारी करने को गाँव।
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!

उनका खेत
उन्हीं का बैल
और उन्हीं का है ट्यूब-वेल
'मेरे हिस्से मेहनत आयी
उनके हिस्से है आराम'
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!

ब्याह-बरात का—
काम कराते
देकर जूठन बहकाते
जब मरता है
कोई जानवर
दे-देकर गाली उठवाते
दिन-रात
ग़ुलामी कर-करके
थक गये—
बिवाई फटे पाँव।
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!

उनका दूल्हा
चढ़ घोड़ी पर
घूमे सारा गाँव-गली
मेरी बेटी की शादी पर
कैसी आफ़त आन पड़ी
जिन पर आया—
घोड़ी चढ़ वो
अलग पड़े हैं दोनों पाँव।
मेरा गाँव
कैसा गाँव?
न कहीं ठौर
न कहीं ठाँव!