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विस्मयादिबोधक / एन. मनोहर प्रसाद

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आश्चर्य!
सचमुच आश्चर्य!
सचमुच जीवन्त आश्चर्य!
गुज़रते आनन्द पर नहीं!
किन्तु हमारे अनन्त दुर्भाग्य पर!
डूबते हुए अन्तहीन पीड़ाजनक समस्याओं पर—
थोपी गयी हमारी सर पर अन्तहीन सहस्त्राब्दियों से!
अवांछित शत्रु नस्ल होने पर भी—
आश्चर्य है कि हम अपने समुदाय के रूप में हैं बरक़रार!