Last modified on 9 जुलाई 2015, at 12:17

मेरी बॉल / दिविक रमेश

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:17, 9 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अरे क्या सचमुच गुम हो गई
मेरी प्यारी-प्यारी बॉल?
कहां न जाने रखकर मैं तो
भूल गई हूं अपनी बॉल!

यहां भी देखा वहां भी देखा
मिली नहीं पर मेरी बॉल!
उछल उछल कर मुझे हंसाती
कितनी अच्छी थी न बॉल!

पकड़ के लाता दॊड़ के पप्पी
दूर फेंकती थी जब बॉल।
कहां न जाने रखकर मैं तो
भूल गई हूं अपनी बॉल।

मां बोली तू बड़ी भुलक्कड़
आ ले खाले ये बादाम।
खाकर अपने इस दिमाग को
देना फिर थोड़ा आराम।

तभी याद आई मुझको तो
दीदी ने तो ली थी बॉल!
झट बोली जाकर दीदी से
दे दो दीदी मेरी बॉल!