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हो हल्ला / हेमन्त देवलेकर

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(बिं चिम्पाकु के लिये)

वह चित्र में रंग भर रही है
और रंग बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं
अपनी बारी आने का

उछल-उछल कर कह रहे हैं रंग
‘’पहले मैं.......पहले लो मुझे
सबसे रंगीन हूँ मैं ही
मुझे भर लो नऽ अपने चित्र में, प्लीज़ चिम्पाकु।‘’

कोई ज़रुरी नहीं कि पेड़ हरा ही बनाया जाए
लाल कहता है- “पत्ते मेरे ही अच्छे दिखेंगे”
पीला, गुलाबी, और नीला झगड़ते हैं-
‘’मैं.... मैं बनूंँगा पेड़
पत्ते तो बस मेरे ही!!‘’

पानी तो सदियों से नीला रहा है
बहुत पुराना नहीं हो गया क्या पानी?
नारंगी कहता है-‘’मुझे भर दो,
दुनिया का सबसे नया और अनोखा समुंदर मैं ही बनाऊँगा”
हरा, कत्थई, पीला, भिड़ते हैं
‘’मैं.......मैं बनूंगा समुंदर
पानी तो मेरा ही सबसे सुन्दर।‘’

हवा दिखाई नहीं देती तो क्या
होती तो है न!
कहता है गुलाबी-मैं बनूंगा हवा
भूरा, बैंंगनी, फ़िरोज़ी भी मचलते हैं-
मै... हवा तो मैं ही
ठंडी और बारिश की महक वाली!!‘’

वह चित्र में रंग भर रही है
और हर एक रंग चाहता है
कि उसके चित्र में
वही वही फैला हुआ हो
रंग तो बस उसी का जमा हो
गाढ़ा और चटख...।