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रंगपंचमी / हेमन्त देवलेकर

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1

तेरे गालों का ख़ुशबूदार पावडर
और बाजू में टिमटिमाता काला टीका
तूझे चूमते वक़्त
मेरे होंठ और नाक पर
छप गया था-
चला आया है साथ में
घर से दफ़्तर तक

तेरा ऑटोग्राफ समझकर
सहेजने की कोशिश करूंगा।

शाम तक के लिए
तेरा चेहरा महसूस होता रहेगा
अपने चेहरे में उगा हुआ।

     2.

इतनी मीठी...
इतनी मीठी है री तू
कि जब हवाएँ
तेरी परिक्रमा करते हुए
तुझे भँवर में घेर लेती होंगी
तेरी कसम
जिलेबी बन जाती होंगी

    3.
     
तेरी चोटी में लगा हुआ
गुलाबी हेयर क्लिप-
जैसे नदी पर बनी
पुलिया है
सुबह
जिस पर से गुजरती है
और उस पार जाकर
साँझ हो जाती है।

तेरी पाजे़ब-
जैसे दूर-दूर तक फैला हुआ
समंदर का गोल किनारा है
तेरे कूदते-फांदते पैर
उसमें लहरें उठाते हैं हर पल
और समंदर का गोल किनारा
कभी खामोश नहीं रह पाता
गाता ही रहता है।

तेरे नाक की नथनी-
जैसे दूज के चाँद के चेहरे पर
बिंदिया जैसा लकदकाता
शुक्रतारा
जिसके टिमटिमाने में
सुनाई देता है
सितार पर सांझ के पहर का कोई राग।

       4.

सूरज कुछ और नहीं
रेडियम का एक टुकड़ा भर है
जो तेरी आँख खुलते ही जगमगाने लगता है

      5.

दुनिया के
किसी भी साज़ के
किसी भी सप्तक का
कोई भी सुर
इतना
ठंडा,
भीगा
और चाशनीदार नहीं
जो सुर
तेरी पप्पी में छिपा है