Last modified on 11 जुलाई 2015, at 12:53

सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है / वीनस केसरी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:53, 11 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीनस केसरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है
वो बस मीठा ही मीठा बोलता है

समय के सुर में बोलेगा वो इक दिन
अभी तो उसका लहजा बोलता है

ये उसकी तिश्नगी है या तिज़ारत
वो मुझ जैसे को दरिया बोलता है

वो सब कुछ जानता है और फिर भी
अँधेरे को उजाला बोलता है

पुरानी बात है, सब जानते हैं
नया मुर्गा ही ज्यादा बोलता है

उसे खुद ही नहीं मालूम होता
नशे में मुझसे क्या क्या बोलता है

मेरी माँ आजकल खुश हैं इसी मे
अदब वालों में बेटा बोलता है