मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चीकन<ref>चिक्कन, चिकनी</ref> मटिया<ref>मिट्टी</ref> कोड़ि मँगाएल, ऊँची कय<ref>करके</ref> मँड़वा छवाएल।
जनकपुर जय जय हे॥1॥
सोने कलस लय<ref>लेकर</ref> पुरहर<ref>कलश के ऊपर रखा जाने वाला पूर्णपात्र, जिसमें अरवा चावल या जौ भरा जाता है। कलश में धान की बाली भी रखी जाती है। यह पूर्णपात्र ‘पुराहित’ का होता है, इसीलिए इसको पुरहत, पुरहथ या पुरहर भी कहा जाता है।</ref> धरब, मानिक लेसु<ref>बलता हुआ दीप</ref> फहराय<ref>वर्त्तिका की लौ उठ रही है</ref>
जनकपुर जय जय हे॥2॥
लाल लाल सतरंजी<ref>सात रंगवाली दरी</ref> अँगन<ref>आँगन</ref> को बिछाएल।
जनकपुर जय जय हे॥3॥
जय जय बोले नउअवा से बाम्हन, जय जय बोले सब लोग।
जनकपुर जय जय हे॥4॥
धन राजा दसरथ, धन हे कोसिलेया।
धन<ref>धन्य</ref> हे सीता देई के भाग, रामे बर<ref>दुलहा</ref> पायल<ref>प्राप्त किया</ref> हे॥5॥
शब्दार्थ
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