Last modified on 15 जुलाई 2015, at 11:06

रामदीन / सूर्यकुमार पांडेय

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:06, 15 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पैरों में टूटी चप्पल है
और अँगोछा कन्धे पर,
रामदीन निकला है घर से
सुबह सवेरे धन्धे पर।

शाम तलक दस-बीस रुपैया
मज़दूरी से पाएगा,
बीवी-बच्चों संग मिल-जुलकर
रोटी-चटनी खाएगा।

जो सुख मिलता रामदीन को
मेहनत-भरी मजूरी में,
कहाँ मज़ा वह बड़ों-बड़ों की
हलवा-सब्ज़ी-पूरी में!