Last modified on 16 जुलाई 2015, at 15:20

गीत-1 / दयानन्द पाण्डेय

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:20, 16 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दयानन्द पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बंसवाड़ी में बांस नहीं है
चेहरे पर अब मांस नहीं है
कैसे दिन की दूरी नापें
पांवों पर विश्वास नहीं है।

इन की उन की अंगुली चाटी
दोपहरी की कतरन काटी
उमड़-घुमड़ सपने बौराए
जैसे कोड़ें बंजर माटी
ज़ज़्बाती मसलों पर अब तो
कतरा भर विश्वास नहीं है।

शाम गुज़ारी तनहाई में
पूंछ डुलाई बेगारी में
सपनों बीच तिलस्म संजोए
पहुंचे अपनी फुलवारी में
फीके-फीके सारे झुरमुट
अंगुल भर उल्लास नहीं है।

[नया प्रतीक, मई, १९७८ में प्रकाशित]