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जीवनमार्गे / कौशल तिवारी

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जीवनमार्गे नग्नपादाभ्यां चलाम्यहम्।
निदाघे चण्डकरमक्षिभ्यां पश्याम्यहम्॥
आकाशं प्राप्य न स्पृशन्ति ये भूमितलम्,
तान् दृष्ट्वा शिरो नत्वा भूमौ चलाम्यहम्॥
प्रणयविपण्यां दृष्टा मया मुद्राक्रीडा,
कोशं हस्तेन स्पृष्ट्वा निर्गच्छाम्यहम्॥
जानामि तया पृष्ठे मे क्षुरो निक्षिप्तः,
तथापि तामेव मनसा सततं स्मराम्यहम्॥
प्रायः सन्ति नैकाः कविश्रेष्ठा भारत्याम्,
रसमज्जनायाऽभिराजकाव्यं पठाम्यहम्॥
केचिदिह जानन्ति ये ननु सुष्ठु काव्यकलाम्,
यल्लिखितं तत् सर्वं हृदयेन लिखाम्यहम्॥