Last modified on 5 अगस्त 2015, at 11:08

बैदनाथक पंडा / राजकमल चौधरी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:08, 5 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वेदादिक सम्मोहक स्वरमे
कहइ छथि भाष्यकार-
एकान्त, गोपस्थल, अभिज्ञात, सम्मोहन,
आदि वैधानिक रहस्यादि बन्धन अछि जीवन
कहइ छथि भाष्यकार-
देवशास्त्र फलितकर्म धर्मके प्रवाहमे
पालित अछि, अंकुरित, पुष्पित फलित अछि आत्मा
(जीबथ लाख बरख, ई प्रशंसाप्रिय परमात्मा)

कहइ छथि भाष्यकार-
आन किछु नइँए विश्व, विराटक परमछद्र अंश थीक
आदि पुरुष कृष्ण, आदि कन्या राधा, पापी मोन कंस थीक
एहने कतेक रूपक गढ़इ छथि भाष्यकार

श्रीमद्भागवत पुराण बँचइ छथि भाष्यकार
करइ छथि शास्त्रार्थ-थिक ब्रह्म, द्वैत वा अद्वैत
जुटइ छथि, मालपुआ भकोसइ लेल बड़का-बड़का फेंकैत
आबइ छथि चउरासी लाख योनिकेँ फनैत
खएबामे राच्छस, सुतबामे दैत
पढ़ि-पढ़ि हिनक धर्मलेख सभटा विवादग्रस्त
वितण्डा लोक करइए, होइए अति नष्ट-ध्वस्त
जे, विश्व थिक मिथ्या, मात्र ब्रह्मे थिक सत्य
जे नइँ, ब्रह्मे थिक फुसि, मात्र सत्ये थिक मर्त्य
जे, सभसँ छथि पूजनीया दुर्गा
(जे, पहिने अण्डा भेल कि मुर्गा?)
जे, हम छी शाक्त, हम वैष्णव, हम शैव
मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना...हा दैव!
मेष वृष मिथुन कर्क, कुक्कुट सन कटु कूट तर्क
ईशावास्य तैत्तरीय मंडूक सांख्य-अर्क
पीबइ जाउ छटि जायत सर्दी-बोखार

कहइ छथि महाराज मनु
अबला सभ पर चलबइ छथि तीर-धनु
शय्याऽऽ सनमलंकारं कामं क्रोधमनार्जवम
द्रोहभावं कचर्यां च स्त्रीभयो मनुरकल्पयत्
नारी थिक मात्र शय्या, आसनक लेल
-आ, ई सभ धर्मासव सोमरस धर्मप्राण पिबइ छथि
सिनूर लगा-लगा पाथर पर, ढेपा पर, चेपा पर, माथ छुबइ छथि
धर्मजीवी जनताकेँ ठकि ठकि कय, लूटि लूटि
सभ युगक दार्शनिक, उपदेशक, भाष्यकार जिबइ छथि
फाटल केथरीकेँ सिबइ छथि...

पकइए धर्मक माँस-भात, चढ़ल अछि पुराणक हंडा
(आइ, ने त’ काल्हि फूटत सभ भण्डा!)
चलू पाछू-पाछू सुनम्र भय, नइँ त’ मारि देत डंडा
बैदनाथक पंडा!!