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सिमरिया घाट / राजकमल चौधरी

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खुट्टापरसँ छूटलि बहिना, गेली सिमिरिया घट
ढरल रंगमे, गत प्रसंगमे-
जट्ठाधारी जोगी भेटलनि
बीच गंगमे
जरल बाँस सन, त्रिया-कर्म-धन,
बहुरुपिया सम्राट!
खुट्टापरसँ छूटलि बहिना, गेली सिमिरियाघाट
खसल घैलमे फूटल बहिना
कयलनि साटम-साट!
बीच गंगमे
नाक डुबौलनि, कान डुबौलनि
गंगा-कातक धार्मिक अन्हारमे
भेल कथा विभ्राट!
मुदा, भक्त केर रक्षक छथि बम्भोला-भगवान
ग्राहकेँ हथियार छूटल
हथिनी दै छथि दान!

(मिथिला- मिहिर: 5.12.65)