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उपमा / राजकमल चौधरी

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प्रखर रौदमे सुखाइत मलाहक जाल
मोट किताबक पन्नामे दबल एक टा पीअर कीड़ा
मेलामे हेरायल बालकक आँखिमे आतंक
पेपरवेटक भीतर बनल लाल-हरियर फूल
पोखरिमे एकसरि नहाइले अबोध बालिका
ई सभ एक हि स्वप्नमे देखल!

(अभिव्यंजना: फरवरी-मार्च, 1963)