सत्य-समर-रत रहि सतत हम निश्चय जय पैब,
सर-दुर्लभ-यश लूटि वा अमरपुरी हम जैब।
तुच्छ शृगालक क्रन्दने भए न सकब हम म्लान,
जँ धन-धुनि सुनि पड़ततँ गरजब सिंह समान।
छी पाथेय-विहीन हम एकाकी असहाय,
स्वप्नहुमे मृगपतिक मन ई चिन्ता न समाय।
ढाहि गुमानिक मान-गढ़ दुर्जन शेखी झाड़ि,
थापब नीतिक राज हम सिंह समान दहाड़ि।