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आवाहन / गोविन्द चौधरी

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विहगक विकल विलाप श्रवण कय
कविमुखसँ निकसलि जे वाणी
अन्तस्तलसँ जागु जागु हे
मंगलमयि कविते कल्याणी।
चन्दन-चिता सजाबथि अपनहि
कर-युगसँ जौहरकेर रानी
की पुनरपि बजइछ न तार तुअ
उर-वीणाकेर वीणापाणी?
देखि सकय की तुअ लोचन नहि
माय-वहिनि केर आँखिक पानी?
झनझनाय नहि उठय तार
अन्तर्वीणाकेर वीणापाणी?
आवाहन करइत छी सुभगे!
पुनि एहि ऊसर भूपर आबी
रुद्धकण्ठसँ बहिर्भूत भय
शुष्क अधरकाँ पुनि सरसाबी
राय पिथौड़ा केर दिल्ली जत
यवन वाहिनीसँ छलि घेड़लि
तत्पर होइ छलि लड़ि मरबा लै
अट्टहाससँ अहँ तत बेढ़लि
अट्टहास जे चन्द कविक वाणीसँ
कय देल अहँ जी भरि कऽ
संयुक्ताकेर स्वयं निर्मिता
चिता जरैं छलि सिहरि सिहरि कऽ
एक बेरि तहिया अहँ हँसलहुँ, एक बेरि पुनि दिअऽ ठहाका
वज्र हस्तसँ लेसि सकी हम ब्रह्माण्डहुमे अग्नि शलाका।
सती पद्मिनी चाहलि जखनहि
बन्दी पतिक करब उन्मोचन
गोरा बादल केर भृकुटीसँ
कविता लहरलि सिंह रक्त बनि
वन्दी चारण कर उच्चारण
युगलवीर कर लै करवाले
लूझि मरल समरानलमे ता’
राणा पहुँचि गेला मेवाडे
एक बेरि तहिया अहँ हँसलहुँ, एक बेरि पुनि दिअऽ ठहाका
वज्रहस्तसँ लेसि सकी हम ब्रह्माण्डहुमे अग्निशालाका।
हृदय हारि राणा प्रताप जौँ
चाहल कय दी आत्म समर्पण
दिल्ली केर अन्तस्तलसौँ
जाज्वल्यमान निकसल संतर्पण
पार्षद पृथ्वी केर वाणीसँ
कविते! हँसलहुँ भै साकारे
एखन कियै कहु कविते! सबटा
झूठ पड़ल अछि तुअ झंकारे
लहरि उठलि भूषणकेर वाणी
वीर शिवाकेर खड्ग भवानी
चमकि उठलि बिजली दक्षिणमे
यवनक यूथ मरय यवनानी
जुल्मी तरुआरिक नीचाँमे
कलपय राष्ट्र पड़ल वेचार
दिनकर केर छनि विवश लेखनी
वीर वियोगी हरि लाचार
चिरनिद्रामे लीन विपथगा
शतशः वीर रिक्त संचार
गोली तोपक, आतप भोगथि
राष्ट्रभूमि ई अत्याचार
आइ बुभुक्षित ब्राह्मणकर सौँ
वरवश छीनल जाइछ रोटी
राष्ट्रभक्त वीराग्रणीक काटल-
जाइत अछि बोटी बोटी
पदाघातसँ परिमर्दित
हिन्दुस्थानोमे हिन्दुक चोटी
जाति जातिकेँ लड़ा लड़ा
बैसाय रहल व्यवसायी गोटी
देश त्यागि वा जेल जाय जे
नुका रहल पुनि अवसरवादी
राष्ट्र राष्ट्र चीत्कार करओ ओ
मात्र श्वराज्यक अछि संवादी
आवहन करइत छी कविते! पुनि एहि ऊसर भूपर आवी
रुद्ध कण्ठसँ बहिर्भूत भय शुष्क अधरकाँ पुनि सरसावी।