(दादा किसन सोनी से चर्चा करते हुए)
कबूतर
नहीं जानता फर्क
मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों
या
हवेलियों, झोंपड़ियों व खण्डहरों में
इनकी मुँडेर, दीवारों, मेहराबों, उजारदानों तथा
सदियों से कुतुब औ’ पीसा की
मीनारों पर जहाँ वह गुजारता है
अपना समय एक-सा
जिन्दगी में धर्म की विकृतियों से वह वाकिफ है
उसे अजानों व घण्टों की
आवाजों के बारे में हैं
बारीक जानकरियाँ,
तभी तो वह,
हम इंसानों के मध्य
शान्ति का प्रतीक बना है।