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रोको ब्राह्मण / असंगघोष

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रोको ब्राह्मण!
यदि तुम रोक सको तो
उस हवा को जो
मुझे छूकर
तुम तक आ रही है
जिसमें मेरे द्वारा छोड़ी गई
साँस भी
घुलमिल गई है
तुम्हारा धर्म भ्रष्ट करने।

साफ कर सकते हो तो करो
नदी के उस पानी को
जिसमें नहाया है
पिता ने
पिछले गाँव में,
तो छोड़ दो
अपना यह ढकोसला
हर बहता पानी गंगा है।

रोक सको तो
रोको ब्राह्मण!
उस प्रकाश किरण को
जो तुम तक पहुँचने से पहले ही
मुझे छूकर गई है
तुम्हें अपवित्र करने।

रोक सको तो
रोको ब्राह्मण
मेरे हिस्से की धूप व चाँदनी
तुम्हारे खेत की मानिन्द
मेरे खेत में भी
समान रूप से
बरसता पानी।

तुममें हो हिम्मत तो
डालो गर्म-गर्म पिघला शीशा
मेरे कानों में
मैंने तुम्हारे ऋग्वेद की
ऋचाएँ पढ़ीं ‘औ’ सुनी हैं
रोको ब्राह्मण!
रोक सको तो।