तुम जब भी
चाहो जुल्म ढाना
मेरे घर आ जाओ
चौबीस घण्टे खुले हैं
मेरे घर के दरवाजे
वह दरवाजे
जिनमें पल्ले नहीं
टाट का पर्दा बँधा है,
जिस घर में कभी कोई
खिड़की बंद नहीं रही
तुम आ सकते हो
बेखौफ़
खिड़की-दरवाजे के रास्ते
या आसानी से खप्पर हटा
तुम आ सकते हो
हम सब पर
गोली-लाठियाँ बरसाने
तुम चाहो तो
पिछली बार की तरह
आग लगा सकते हो
छप्पर में
सारा घर धू-धूकर
पुनः जल उठेगा
हम सब जल जाएँगे
तुम्हारी ईर्ष्या की तरह
परन्तु
कभी मत आना
आग लगाने के बाद
मेरे घावों पर मल्हम लगाने
मेरे बच्चों की लाशों पर
अपनी राजनीति की रोटियाँ सेंकने
दाँत निपोरते
झूठी सहानुभूति दिखाने
अब तेरा यह ढोंगी न्याय
यह बहुरुपियापन
सहा नहीं जाता
मुझसे
माँ कसम
अबकी बार
बच नहीं पाओगे तुम!