तुम मुझे स्वर दो, तुम्हारे मर्म को मैं गान दूँगा!
पा मधुर यौवन मदिर मधु-
मास ने तरु-तृण सजाया!
कोकिला ने हूक भर, दिश
को मुखर, मंजुल बनाया!
तुम रचो मृदुरूप, प्रिय उस रूप को मैं प्राण दूँगा!
दीप निशि भर मुग्ध, पागल
प्राण को छलता रहेगा!
पर शलभ उस लौ-लपट में
मूक ही जलता रहेगा!
तुम मुझे दो यातना, मैं प्रेम की पहिचान दूँगा!
निशि विरह की कालिमा
में अश्रु के मोती बहाती,
अरुणिमा जिसको किरण-
कर से उठा निज को सजाती!
तुम मुझे तम दो, तुम्हें मैं सुखद स्वर्ण विहान दूँगा!
(17.8.48)