Last modified on 27 अक्टूबर 2015, at 01:57

प्रवास गीत / श्यामनन्दन किशोर

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:57, 27 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जाड़े की धूप वहाँ गोरी छरहरी होगी,
बादल यहाँ उमड़े असमय भीमकाय!

मेरे आँगन महमह करती होगी रजनीगन्धा, शेफाली!
यहाँ गमलियाँ सजीं, निर्गन्ध पुष्पोंवाली।

सब अपने-आपने में चलते सिर के बल!
मेरा तन थिर, मन विह्वल, चंचल!

धन-गर्जन-तर्जन! खनक सुनता चूड़ी की!
बुंदियाँ जैसे मोती गुँथे हैं नथ में दूरी की।

कौंध गयी छवि-प्रिया वातायन से मेरे
बिजुरी की अंजुरी में हिया दबा जाय।

भींगू मैं किसके बल, थरथराये गात!
बहुत कठिन सहना दिन यों बनकर रात!

सर्द आह ढूँढ रही उसका दुशाला यों,
चलो मन, लिखे दिन-दहाड़े दीपक जलाये।

(23.10.1978)