Last modified on 6 नवम्बर 2015, at 20:56

कथा मेरी / रामनरेश पाठक

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:56, 6 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश पाठक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कथा मेरी अधूरी ही रही,
पूरी नहीं होगी.
व्यथा मेरी असुनी ही रही,
सुनी नहीं होगी.

मीत के संग-संग तिरोहित
प्राण होते.
धरा के नभ में विलोपित
गान होते.

सांध्य से कुछ दूर की
दूरी नहीं होगी.
शिला का मदुर मधु-संगीत
मजबूरी नहीं होगी.

कथा मेरी अधूरी ही रही,
पूरी नहीं होगी.
चिता मेरे सपन की जल चुकी,
दूरी नहीं होगी.