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मुँहजली / रंजना जायसवाल

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उसका पहला अपराध लड़की होना था
दूसरा सुन्दर होना
तीसरा न स्वीकारना अनचाहा प्रेम
अब वह लड़कीतो थी, पर सुन्दर न थी
तेज़ाब से झुलस दिये गये उसके चेहरे से
किसी को प्यार न था
कुछ दिन वह बनी रही ख़बर
उसके पूर्व के खूबसूरत चेहरे को दिखाकर
खूब बटोरी मीडिया और घर वालों ने रकम
उसकी झोली में आयी सहानुभूति
और प्रेमहीन पहाड़-सा जीवन
बच्चे चीख पड़ते हैं
जवान पास नहीं फटकते
बूढ़े दया दिखाते हैं
माँ के धैर्य का टूट जाता है अक्सर बाँध
-‘मर ही क्यों नहीं गई मुँहजली’
वही है लड़की, वही शरीर, वही आत्मा
वही खूबियाँ सारी
बस खो गया है चेहरा...पहचानी जाती थी
जिससे वह।
किसी के एजेंडे में नहीं है
कभी घूँघट
और आज खुद्दारी की सजा भोगती
चेहरा विहीन लड़की कैसे जीएगी
पौरुष विहीन समाज में!
मुझे डर है सुन्दरीकरण के इस दौर में
गरीब बस्तियों की तरह
फेंक न दी जाए एक दिन वह भी
कचरे के ढेर पर।