मेरे सामने मेज पर एक चश्मा केस है
जिसे भूल गये थे तुम उसी तरह
जैसे भूल जाते हो अक्सर मुझे।
केस की मजबूती में सुरक्षित रहता है
कोमल चश्मा
जैसे आघातों के बीच तुम्हारा प्रेम
हालाँकि केस की तरह कठोर लगता है
तुम्हारा ऊपरी आवरण भी
पर जानती हूँ तुम काठ नहीं।
केस छूट जाने से हुए थे तुम परेशान
मानो छूट गया हो अपराध का कोई प्रमाण
जबकि छूट जाते हो तुम खुद
देह, मन और घर के कोने-अतरों तक
हर बार।
प्रेम खुले तो उड़ जाती हैं धज्जियाँ
बताते हुए तुम ऐसे ही खाली लगते हो
जैसे बिना चश्मे का
तुम्हारा यह चश्मा केस।