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करवा चौथ / हेमन्त कुकरेती

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एक दिन ईश्वर को पराजित करने को जुटती हैं औरतें
इतना डरती हैं कि उसे पूजने लगती हैं
आदिकालीन होता है उनका दिन
आदिम होता है उनका डर
प्राचीन होती हैं औरतें

वे रचती हैं अपने चेहरे
रंगती हैं धरती
लाल चटख होते हैं उनके कपाल
सृष्टि के जाने किस नियम को मानकर औरतें
अपने भय को गाती हैं चौराहे पर

सदियों से भूखी औरतें
पानी से भरी थाली में कँपकँपाती देखती हैं अपनी परछाई
और फेंक देती हैं पीठ पीछे
भय तब भी दिखता है

तेंदुआ छिपा रहता है पत्तों के पीछे उनकी घात में
और दबोचने से पहले हर लेता है शक्ति

जब नहीं थमता कोलाहल
वे अर्पित कर देती हैं गीत में पिरोकर अपना डर

अग्नि और चन्द्रमा और जाने किस-किसको
खुश होती हैं कि आकाश तक पहुँचता होगा उनका हाहाकार
जिसे सोख लेंगे बादल

कभी-कभी वे डरती हैं कि पृथ्वी से भेजे उपग्रह
या उनसे रुष्ट कोई अतृप्त पूर्वज
कहीं उसे वापस न भेज दे उनके पास

और वे ईश्वर को प्रसन्न करने के उपाय सोचती हुई
खु़शी की तरह उच्चारने लगती हैं अपना भय...