Last modified on 17 दिसम्बर 2015, at 15:14

हन्त्या / हेमन्त कुकरेती

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:14, 17 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त कुकरेती |संग्रह=चाँद पर ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हन्त्या<ref>उत्तराखण्ड में व्याप्त जनविश्वास के अनुसार अतृप्त पूर्वज इस विशिष्ट नृत्यगान (हन्त्या) के माध्यम से अपना रोष व्यक्त करते हैं।</ref>

देवता क्रोध की तरह आते हैं छा जाते हैं मुसीबत की तरह
जिस पर कृपा करते हैं उसका कपाल फोड़कर
सौभाग्य उतरता है
और सब उसकी आँच से हो जाते हैं ऊष्मित

देवता माँगते हैं अंगार
और राख शरीर पर लपेटकर कुपित होते हैं
देवता शिकायत करते हैं कि हम उन्हें भूल गये
याद तो पड़ता नहीं भूल-चूक क्षमा!
हम दण्ड<ref>अक्षत अन्न के साथ सवा रुपया का मुद्रा-दण्ड कुल-देवता के नाम पर चढ़ाने का विधान।</ref> निकालते हैं देवता के नाम से
और वह अनिष्ट की सूचना धमकाने के स्वर में देता है

क्या है यह सब नाटक
हमारे पूछने पर बूढ़े डपटते हैं हमें
समझदार दिखते हुए वे कहते हैं कि जो मानता है
उसके लिए यह सब कुछ है
और मानता है अगर तो कुछ-न-कुछ अपराध
उसने किया होगा ज़रूर

देवता कभी पितरों के बहाने आते हैं
कभी विश्वास के भरोसे

कभी मन में आता है कि देवता होकर भी
इच्छा पूरी करवाने के लिए उन्हें मिलता भी कौन है?
एक अदना आदमी!

शब्दार्थ
<references/>